दिन के पहले पहर में
उजले सपनों की चादर ओढे
जब नींद गहराती है
मदहोश कर जाती है
तभी खिड़की पर दस्तक देती
उजाले की पहली किरण
चिडियों की चहचहाहट और
घास पर बिछी ओस की बूँदें
खींचती हैं मुझे अपनी ओर
खिड़की खोल
जब देखती हूँ
एक सर्द हवा का झोंका
मेरे बालों को छूता हुआ
गुज़र जाता है
और फिर अचानक
उस एक पल में
फूलों की महक से
मेरा कमरा भर जाता ही
उस महक में ढूंढती हूँ
एक कोमल सा स्पर्श
कुछ गुज़रे हुए पल
कुछ महकी हुई यादें
कुछ बहकी सी बातें
कुछ ख़ास नहीं
बस यूँ ही....:)
बस यूँ ही....:)
~~पायल~~
चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनाएं.
ReplyDelete---
लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
उस महक में ढूंढती हूँ
ReplyDeleteएक कोमल सा स्पर्श
कुछ गुज़रे हुए पल
कुछ महकी हुई यादें
कुछ बहकी सी बातें
कुछ ख़ास नहीं..
बहुत खूब! स्वागत है आपका.
tahe dil se shukriya:)
ReplyDeleteपायल जी की इस रचना में भाव मिला कुछ खास।
ReplyDeleteऔर सबेरे के चित्रण का बेहतर है एहसास।।
दिन के पहले पहर में
ReplyDeleteउजले सपनों की चादर ओढे
जब नींद गहराती है
मदहोश कर जाती है
तभी खिड़की पर दस्तक देती
उजाले की पहली किरण
चिडियों की चहचहाहट और
घास पर बिछी ओस की बूँदें
खींचती हैं मुझे अपनी ओर
खिड़की खोल
जब देखती हूँ
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल