विचलित मन
एक घूमता हुआ आइना सा
भटकता हुआ
अठखेलियाँ करता,
अधीर,असहाय सा
अक्स दिखता उसमे निराकार
कभी कुछ मेरे जैसा
कभी दिखता वो बिल्कुल तुमसा
एक घूमता हुआ आइना सा
भटकता हुआ
अठखेलियाँ करता,
अधीर,असहाय सा
अक्स दिखता उसमे निराकार
कभी कुछ मेरे जैसा
कभी दिखता वो बिल्कुल तुमसा
पगला सा मन
न कोई विकल्प है
न कोई समाधान
फिर भी निकल पड़ता है
बदहवास सा किसी खोज में
दूर जाने क्या तलाशता हुआ
जैसे मैं निकल पड़ी हूँ
जाने कहाँ यूँ ही लिखते लिखते..
~~पायल~