Sunday, August 11, 2013

ज़िन्दगी

दो पल रूककर चल पड़ती है ज़िन्दगी
सांस सांस हवा सी बहती है ज़िन्दगी

यादों में कुछ इस तरह ढ़लती है ज़िन्दगी
आँखें मूंदे फिर कभी नज़र आती  है ज़िन्दगी

कभी अठखेलियाँ करती है कभी मुस्कुराती है ज़िन्दगी
कभी थकी हुई गुमसुम नज़र आती है ज़िन्दगी

कभी खुद को खुद से चुराती है ज़िन्दगी
कभी खुद को खुद से मिलाती है ज़िन्दगी

कभी ठहरोगे कहीं दो पल के लिए राही
फिर देखना ज़रा कितना सताती है ज़िन्दगी

किसी के लिए कभी जी कर तो  देखो
चुपके से तुम्हें उसकी जान बनाती  है ज़िन्दगी

भीगी दोपहर में मचलती आँगन में धूप सी
छुपती-छुपाती खामोश क़दमों से आती है ज़िन्दगी

ख्वाब सजाती ,हंसाती-रुलाती,भागती-दौड़ती ये  ज़िन्दगी
आती जाती साँसों के बीच डूबती उभरती ज़िन्दगी
~~पायल ~~

Wednesday, May 29, 2013

बारिश

 बारिश..
 कितना कुछ सिमटा हुआ है
 इस एक शब्द में...
मौसम का बदलाव ,
मिट्टी की सौंधी खुशबू..
लहलहाती फ़सलें और हरियाली..
भड़ास निकालते गरजते बादल...
कौंधती बिजली
कौन जाने कितना कुछ 
समेटे हैं अपने भीतर
सिहर जाती हूँ मैं ये सोचकर..

मौसम की पहली बारिश में भीगते ही 
न जाने कितनी उम्मीदें ,कितने सपने,
कितनी यादें और कितने एहसास
डबडबाई आँखों में 
पल भर में झिलमिलाने लगते हैं ..
सब कुछ अपने भीतर 
समेटे आती है ये बारिश..
बरसती है,भिगाती है,
घर का आँगन
भीतर ही भीतर कुछ कहता है मन
न जाने कितनी यादें ..

और बस !
 बरसने लगती है बारिश ..
रिमझिम ..
सकुचाती, सहमी हुई  बारिश ..
सूनी सड़कों पर 
बारिश से बचते लोग
क्या कभी समझ पाएंगे
क्या कहती है ये बारिश!?
~~ पायल ~~ 

Wednesday, March 13, 2013

सुनो,कहा था ना मैंने?

सुनो,
ऐसे ही थोड़ी कहती थी मैं 
कि तुम नहीं समझोगे!

कितने ख़याल थे
छुपे  हुए किसी कोने में,
कुछ अधखिले,
कुछ मुरझाये,
जज़्बातों  की तरह।

आज बरसों बाद, 
उन्ही ख्यालों को समेटते हुए, 
उलझे हुए  
इस कहानी के धागे में,
 शब्दों को पिरोने
की नाकाम कोशिश
करती  हूँ।

एक मुस्कुराती हुई नज़्म 
का इंतज़ार है।
उदासी की लकीरों के पीछे
से झांकती नम आँखें
अचानक झंझोर कर
जगा जाती हैं ।
आजकल कुछ बदल गया है,
 मैं ऐसी ही तो थी!

सुनो,
कहा था ना मैंने?
कुछ दबी सी आवाज़ में?
बस इतना ही याद है मुझे!
~~ पायल ~~