Sunday, August 11, 2013

ज़िन्दगी

दो पल रूककर चल पड़ती है ज़िन्दगी
सांस सांस हवा सी बहती है ज़िन्दगी

यादों में कुछ इस तरह ढ़लती है ज़िन्दगी
आँखें मूंदे फिर कभी नज़र आती  है ज़िन्दगी

कभी अठखेलियाँ करती है कभी मुस्कुराती है ज़िन्दगी
कभी थकी हुई गुमसुम नज़र आती है ज़िन्दगी

कभी खुद को खुद से चुराती है ज़िन्दगी
कभी खुद को खुद से मिलाती है ज़िन्दगी

कभी ठहरोगे कहीं दो पल के लिए राही
फिर देखना ज़रा कितना सताती है ज़िन्दगी

किसी के लिए कभी जी कर तो  देखो
चुपके से तुम्हें उसकी जान बनाती  है ज़िन्दगी

भीगी दोपहर में मचलती आँगन में धूप सी
छुपती-छुपाती खामोश क़दमों से आती है ज़िन्दगी

ख्वाब सजाती ,हंसाती-रुलाती,भागती-दौड़ती ये  ज़िन्दगी
आती जाती साँसों के बीच डूबती उभरती ज़िन्दगी
~~पायल ~~

2 comments:

  1. बस कुछ ऐसी ही ये जिंदगी .. :)

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  2. Ek baar mili hai
    Khulke jee lo yeh Zindagi
    Kya pata kab milegi
    Phir aisi zindagi

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