Thursday, November 26, 2009

सुर संग तान मधुर घुले जब..

सुर संग तान मधुर घुले जब
प्रीत अधूरी गीत बन जाये…
धुआं उठे जब आहों से तब
हिमनदी भी पिघली जाए

धरती संग गगन झूमे जब
सागर यूँ हिचकोले खाए
सीने में उठे तूफ़ान तब
जीवन नय्या डूबी जाए

सांझ ढले दिया जले जब
रंज-ओ-ग़म दूर हो जाए
पलकों पर मोती सजे तब
सतरंगी फ़िज़ा में घुल जाए

यादों के गलियारे में जब
तारों की महफ़िल सज जाये
चाहत के मेले लगे तब
दूर कहीं मेघ नीर बरसाए

~~पायल~~

Monday, November 2, 2009

उलझन....

ना जाने क्यूँ यह ख्याल आया
और अंतस में घर कर गया
दूर पड़ा एक कागज़ का टुकड़ा
कुछ सुनी हुई कहानियाँ सुना रहा था
अपने हाथ में उठा कर
अपनी हथेली से दबाकर
उसकी सिलवटों को हटाया
और गौर से देखा
तो परछाइयों में क़ैद
छटपटाता हुआ एक साया नज़र आया
जो अनायास ही चीखने चिल्लाने लगा

वो देखना चाहता था
अपनी आँखे मूँद
महसूस करना चाहता था
रुकी हुई धड़कन को
उड़ना चाहता था
पंछियों के संग
गाना चाहता था
कुछ अनसुने गीत
पहचानना चाहता था
ख़ुद को..

पर बदली हुई गति
से आख़िर बदल ही गया वो साया
अंधेरों में भी
महसूस कराता था जो अपना वजूद
आज सिलवटों में लिपटा हुआ
अधूरा सा दिखता है अब
पड़ा हुआ है कहीं दूर
अंधेरों में ढूंढता है अब अपना वजूद..
ना जाने क्यूँ यह ख्याल आया
और अंतस में घर कर गया !
~~पायल~~