Sunday, March 22, 2020

पुरानी यादें #1

इमारत गिर रही थी..सब याद आ रहा था| पापा का तबला जीजी का डांस ताऊजी की सधी हुई कैलीग्राफी और मोती पिरोये हुए शब्द, जब लेखनी से लिखते थे तो देखते ही सब मंत्रमुग्ध हो जाते थे| ताईजी का गोल वरांडे में लगी कुर्सी पर बैठे घुटनों को सहलाना और वहीं से आवाज़ लगाना| और हाँ वो हाथ का पंखा तो जैसे उनसे छूटता ही नहीं था| मम्मी के हाथ के दहीबड़े....और उनकी मीठी सी डाँट सब याद आ रहा था| वो आम की बौर पर कोयलों का कूकना वो हमारा थाली में सुबह सुबह केवड़े के फूल इकट्ठे करना और फिर उनकी माला बनाना| जब आँधी चलती थी तब सब पहुँच जाते थे उस इमली के पेड़ के नीचे| साल भर के लिए इमली इकट्ठी कर लेते थे| गुड़िया की शादी भी तो करते थे पर विदाई नहीं करते थे| अपने गुड्डे गुड़ियों से लगाव जो था| अपनों सी बिछड़ने का दुःख तो बचपन से ही था| बातें होती थीं हमारे पास. वक़्त जो था..बस अच्छी यादों को समेटकर रखा है मैंने| होड़ लगी रहती थी हम बहनों में. कौन कितनी सुबह उठेगा| जब टहलने जाते थे शाम के वक़्त खुली सड़कों पर बिना किसी डर के शायद वैसा सा ही शांत वातावरण है आज... चिड़ियों की चहक आज ज़्यादा सुनाई दे रही है| पुरानी बातें पुरानी यादें आज कुछ ज़्यादा ही आ रही हैं| -payalagarwal

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