Tuesday, March 24, 2020

पुरानी यादें #2 

कुछ दिन पहले ज़िक्र आया था उन दिनों का जब हर राष्ट्रीय पर्व पर पापा के सब चचेरे भाइयों के परिवार भी हमारे घर पर साथ बैठते थे| हंसी मज़ाक, किस्से कहानियों के बीच वक़्त का पता ही नहीं चलता था| कितना मज़ा आता था| सब कुछ ना कुछ बनाकर लाते थे| क्या कहते थे हम उसे? हाँ, पूल लंच| उस खाने का स्वाद ही अलग होता था| कितना प्यार घुला होता था उसमें| एक बार खूब बारिश हो रही थी| पंद्रह अगस्त थी शायद| लॉन में पानी भरने लगा था| मज़ा खराब हो जाता है ना? सब बड़े बारिश को रोकने के लिए अपना अपना टोटका बता रहे थे| फिर किसी ने बोला कि कैंची उल्टी गाढ़ दो बारिश रुक जाएगी| हम बच्चे क्यारी में कैंची गाढ़ रहे थे और सच में बारिश रुक गयी| हमारे लिए तो जैसे चमत्कार था| सब साथ होते थे तो त्यौहार होता था| और वो साल में दो बार जो माथुर फंक्शन होता था, याद है मुझे| वो घर पर एक महीने पहले से सबका इकठ्ठा होना| कितनी रिहर्सल करते थे| सरस्वती वंदना, नृत्य, नाटक, गीत और भी जाने क्या क्या| मम्मी कुछ न कुछ बनाती थीं नाश्ते के लिये| अच्छा लगता था| याद आ रही है वो फंक्शन के एक दिन पहले हमारे सत्युग आश्रम में ड्रेस रिहर्सल| फिर धीरे धीरे सब शहर से बाहर जाने लगे और वो फंक्शन भी साल में एक बार होने लगा| किसी की शादी हो गयी, किसी का ट्रांसफर| शहर भी सूना सा हो गया था| माँ के बिना आज ज़्यादा सूना लगता है| दिल से सब जुड़े रहें, इतना काफ़ी है| - पायल अगरवाल  

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