Friday, March 27, 2020

पुरानी यादें #3 

कुछ पुरानी तस्वीरें देखीं| सोफिया की याद आ गई| बाबाजी ने मम्मी से कहा था कि मुझे इंग्लिश मीडियम में ही पढ़ाएं| बर्मीज़ डांस किया था हमने| छतरी हाथ में लेकर| एनुअल फंक्शन था..कितने छोटे थे हम| नीले रंग की ड्रेस और बालों में मोटा वाला लाल रिबन. अजीब था पर अच्छा था! डिसिप्लिन तो स्कूल से ही सीखा. असेंबली में वन हैंड डिस्टेंस| सॉन्ग बुक के वो हिम्न्स आज भी याद हैं| टीचर्स स्ट्रिक्ट तो थीं पर प्यार भी करती थीं| केमिस्ट्री प्रैक्टिकल में जर्किन जल थी मेरी| केमिकल कुछ गलत मिला दिया था शायद| टीचर ने प्यार से समझा दिया| घर पर भी मम्मी को फ़िक्र तो हुई पर कुछ नहीं कहा| बस समझा दिया और फिर, कभी वो गलती नहीं दोहराई| जब गलती पता हो तो समझ में भी जल्दी आ जाता है| कितनी सारी खट्टी मीठी यादें हैं उन दिनों की| सिस्टर्स का मॉरल साइंस का लेक्चर ज़िन्दगी जीने का तरीका सिखाता था! ध्यान से सुनते तो ज़िन्दगी का सार था उनमें| कभी कभी स्कूल के बाद इकट्ठे होकर सहेलियों के घर चले जाते थे| बेफिक्री थी उन दिनों| वक़्त ही कुछ और था| सहेलियों का झुरमुट. शुरू से साथ में ही पढ़ रहे थे| कितनी बातें करते थे हम| गर्मियों की छुट्टियों में कॉमिक्स एक्सचेंज करने के बहाने सब इकठ्ठा होते थे| मिस स्टेला के मैचिंग इयररिंग्स और सैंडल्स कितना नोटिस करते थे| मूर्खाओं कह कर सम्बोधित करते हुए हमारी हिंदी की टीचर ने दो पंक्तियाँ बोली थीं उस दिन, अपनी लिखी हुई ,"चली जा रही थी, चली जा रही थी गाड़ी पटरी पर चली जा रही थी|" गहरी बातें होती थीं, पर समझता कौन था?.. तीज पर टीचर्स की मेहंदी कितनी अच्छी लगती थी| याद है एक बार एक टीचर ने बोला कि जब सालों बाद अपनी ग्रुप फोटोज देखोगे तब याद करोगे सब| हँस पड़ी थी हमारी पूरी क्लास| शादी, बच्चे कौन सोचता है तब| ग्रास ग्राउंड में हम फ़्री पीरियड में चले जाते थे| कभी धूप में क्लास होती थीं तो हम सब के चेहरे खिल जाते थे| ग्रास ग्राउंड के कोने में जंगली घास होती थी| हम उसकी छोटी सी टोकरी बनाते और उसको छोटे पीले और गुलाबी फूलों के गुच्छों से भर देते| क्लास में रो वाइज सिंगिंग कम्पटीशन करते और मार्क्स भी देते| छोटी छोटी चीज़ों में खुशियां ढूँढ लेते थे| हमारी सिंगिंग की टीचर कहती थीं कि मुझे गाना सीखना चाहिए| आर्ट टीचर आर्ट सिखाना चाहती थीं, ध्यान नहीं दिया कभी| उन सब्जेक्ट्स के बाहर ही नहीं निकल पाए जिनकी कभी कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ी| अक्सर हम समझ ही नहीं पाते कि हम खुद क्या चाहते हैं| पहले पता होता तो कॉमर्स क्यों लेती? -पायल अगरवाल

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