अक्सर सोचती हूँ
ये ख्याल कहाँ से आते हैं
दो पल ठहरकर
फिर खो जाते हैं
कभी कविताएं बन जाते हैं
कभी किस्से सुनाते हैं
सच ही तो है
अतीत के पन्नों में
जिस कविता को कभी हमने रचा
आज वो कविता हमें रच रही है
काँटों भरी राहों पर
आस का दीप जला रही है
रास्ता तय है
और मंज़िलें भी
सौभाग्यशाली हूँ
मेरी कविताओं ने मुझे चुना
वरना शब्द तो यूँ भी बिखरे थे
फ़िज़ा में खुशबू की तरह..
बिखरे हुए मोती जैसे
सिमट गए कुछ लफ़्ज़ों में..
नज़्मों की तरह ~पायल
ये ख्याल कहाँ से आते हैं
दो पल ठहरकर
फिर खो जाते हैं
कभी कविताएं बन जाते हैं
कभी किस्से सुनाते हैं
सच ही तो है
अतीत के पन्नों में
जिस कविता को कभी हमने रचा
आज वो कविता हमें रच रही है
काँटों भरी राहों पर
आस का दीप जला रही है
रास्ता तय है
और मंज़िलें भी
सौभाग्यशाली हूँ
मेरी कविताओं ने मुझे चुना
वरना शब्द तो यूँ भी बिखरे थे
फ़िज़ा में खुशबू की तरह..
बिखरे हुए मोती जैसे
सिमट गए कुछ लफ़्ज़ों में..
नज़्मों की तरह ~पायल
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