Saturday, March 21, 2020

अक्सर सोचती हूँ

अक्सर सोचती हूँ
 ये ख्याल कहाँ से आते हैं
दो पल ठहरकर
 फिर खो जाते हैं
 कभी कविताएं बन जाते हैं
कभी किस्से सुनाते हैं

 सच ही तो है
अतीत के पन्नों में
 जिस कविता को कभी हमने रचा
 आज वो कविता हमें रच रही है
 काँटों भरी राहों पर
 आस का दीप जला रही है
 रास्ता तय है
और मंज़िलें भी
 सौभाग्यशाली हूँ
मेरी कविताओं ने मुझे चुना
 वरना शब्द तो यूँ भी बिखरे थे
फ़िज़ा में खुशबू की तरह..
 बिखरे हुए मोती जैसे
 सिमट गए कुछ लफ़्ज़ों में..
नज़्मों की तरह ~पायल 

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