चलो, आज फिर दिल टटोलते हैं
बेधड़क कुछ राज़ खोलते हैं
एक गहरी साँस में न जाने
कितने मचलते गुमसुम लम्हे
मुट्ठी में दबे चंद अल्फ़ाज़
मेरी कलम की स्याही से बोलते हैं
चलो, आज बंद मुट्ठी खोलते हैं
क्या छूट गया, क्या साथ लाये,
क्यों सोचना? क्या अगला,
क्या पिछला, बस आज है,
आज ही चलो बोलते हैं
चलो, आज में रंग घोलते हैं
चलो, आज फिर दिल टटोलते हैं
बेधड़क कुछ राज़ खोलते हैं
-पायल
10.7.17
बेधड़क कुछ राज़ खोलते हैं
एक गहरी साँस में न जाने
कितने मचलते गुमसुम लम्हे
मुट्ठी में दबे चंद अल्फ़ाज़
मेरी कलम की स्याही से बोलते हैं
चलो, आज बंद मुट्ठी खोलते हैं
क्या छूट गया, क्या साथ लाये,
क्यों सोचना? क्या अगला,
क्या पिछला, बस आज है,
आज ही चलो बोलते हैं
चलो, आज में रंग घोलते हैं
चलो, आज फिर दिल टटोलते हैं
बेधड़क कुछ राज़ खोलते हैं
-पायल
10.7.17
☺
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