Tuesday, July 26, 2016

उम्मीद


ना जाने कितनी बार ,
खुद को मारा 
और फिर ज़िंदा किया। 

बस एक उम्मीद  के सहारे
जो जागती तो है  
दिल के किसी कोने में 
पर फिर चुपचाप 
आँखें मूँद सो जाती है 
बस 
मुझे ज़िंदा 
रखती है  
उम्मीद। 
~~पायल ~~

2 comments:

  1. Replies
    1. duniya ka to pata nahin..hope is my favourite word. Aur is ummeed se koi ladai bhi nahin hai meri. Ab to hissa ban gayi hai mera. Poora karti hai mujhe ye ummeed. :)

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