एक और बात कहनी है तुमसे, बोलो तो कह दूँ|शब्दों को नहीं समझते, क्या चुप्पी को समझ पाओगे तुम? देर रात तक बस सोचती रहती हूँ |हम आगे बढ़ते जाते हैं ,लम्हे ढलते जाते हैं |सुख-दुःख , हंसी ख़ुशी , कितनी बातें, कितनी यादें, कितने सपने ,कितने वादे कितना कुछ वक़्त के आगे धुंधला पड़ जाता है..
जब दिल की परतें खुलती हैं, कई बार यादें घेरने लगती हैं..अक्सर कहते हो, यहीं हो तुम.. खुश हूँ मैं, पर क्या खुश हो तुम? बताओ क्यों हो गुमसुम? कुछ है जो कहना चाहते हो? पर कहने से घबराते हो? चलो छोड़ो, कह नहीं पाओगे ,और कहे बिना रह भी नहीं पाओगे|वक़्त पर छोड़ देते हैं, तुम खुद समझ जाओगे |ऐसी ही तो थी मैं| कहाँ बदला है कुछ?
बस यूँ ही डायरी के पन्नो के बीच में एक और किस्सा क़ैद हो गया |कब किसके हाथ लग जाए ये डायरी क्या पता| कितने किस्से हैं इस नादान डायरी में, कुछ हंसाते, कुछ रुलाते, कुछ बहुत कुछ सिखाते और कुछ यूँ ही गुदगुदा जाते|कहानियां तो सब एक जैसी ही होती हैं बस उन्हें निभाते कैसे हैं एक बहुत बड़ा दायित्व होता है कहानीकार की लेखनी पर|जो मोड़ देना चाहे वो दे दे|
मैं सोचती हूँ अंत वो हो जिसमें किसी को दुःख न पहुंचे , जिसमें सबकी भलाई हो| कहते हैं न अंत भला, तो सब भला. #payalagarwal
जब दिल की परतें खुलती हैं, कई बार यादें घेरने लगती हैं..अक्सर कहते हो, यहीं हो तुम.. खुश हूँ मैं, पर क्या खुश हो तुम? बताओ क्यों हो गुमसुम? कुछ है जो कहना चाहते हो? पर कहने से घबराते हो? चलो छोड़ो, कह नहीं पाओगे ,और कहे बिना रह भी नहीं पाओगे|वक़्त पर छोड़ देते हैं, तुम खुद समझ जाओगे |ऐसी ही तो थी मैं| कहाँ बदला है कुछ?
बस यूँ ही डायरी के पन्नो के बीच में एक और किस्सा क़ैद हो गया |कब किसके हाथ लग जाए ये डायरी क्या पता| कितने किस्से हैं इस नादान डायरी में, कुछ हंसाते, कुछ रुलाते, कुछ बहुत कुछ सिखाते और कुछ यूँ ही गुदगुदा जाते|कहानियां तो सब एक जैसी ही होती हैं बस उन्हें निभाते कैसे हैं एक बहुत बड़ा दायित्व होता है कहानीकार की लेखनी पर|जो मोड़ देना चाहे वो दे दे|
मैं सोचती हूँ अंत वो हो जिसमें किसी को दुःख न पहुंचे , जिसमें सबकी भलाई हो| कहते हैं न अंत भला, तो सब भला. #payalagarwal
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