Wednesday, March 13, 2013

सुनो,कहा था ना मैंने?

सुनो,
ऐसे ही थोड़ी कहती थी मैं 
कि तुम नहीं समझोगे!

कितने ख़याल थे
छुपे  हुए किसी कोने में,
कुछ अधखिले,
कुछ मुरझाये,
जज़्बातों  की तरह।

आज बरसों बाद, 
उन्ही ख्यालों को समेटते हुए, 
उलझे हुए  
इस कहानी के धागे में,
 शब्दों को पिरोने
की नाकाम कोशिश
करती  हूँ।

एक मुस्कुराती हुई नज़्म 
का इंतज़ार है।
उदासी की लकीरों के पीछे
से झांकती नम आँखें
अचानक झंझोर कर
जगा जाती हैं ।
आजकल कुछ बदल गया है,
 मैं ऐसी ही तो थी!

सुनो,
कहा था ना मैंने?
कुछ दबी सी आवाज़ में?
बस इतना ही याद है मुझे!
~~ पायल ~~ 

5 comments:

  1. एक मुस्कुराती हुई नज़्म
    का इंतज़ार है।
    उदासी की लकीरों के पीछे
    से झांकती नम आँखें
    अचानक झंझोर कर
    जगा जाती हैं ।
    paayal bahut khoob !!!achha laga tumhe hindi mein padhna ....aur likhiyega ...achhi kavita badhai !!

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  2. Payal.kya kahu,dil ko choo gayi tumhari yeh kavita. Keep the fire alive :)

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