विचलित मन
एक घूमता हुआ आइना सा
भटकता हुआ
अठखेलियाँ करता,
अधीर,असहाय सा
अक्स दिखता उसमे निराकार
कभी कुछ मेरे जैसा
कभी दिखता वो बिल्कुल तुमसा
एक घूमता हुआ आइना सा
भटकता हुआ
अठखेलियाँ करता,
अधीर,असहाय सा
अक्स दिखता उसमे निराकार
कभी कुछ मेरे जैसा
कभी दिखता वो बिल्कुल तुमसा
पगला सा मन
न कोई विकल्प है
न कोई समाधान
फिर भी निकल पड़ता है
बदहवास सा किसी खोज में
दूर जाने क्या तलाशता हुआ
जैसे मैं निकल पड़ी हूँ
जाने कहाँ यूँ ही लिखते लिखते..
~~पायल~
बेहद प्यार व् भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteजब हम किसी रचना के सफ़र में होते हैं तो सचमें जैसा महसूस होता है उसी मन को आपने किसी चीज़ के जैसे सामने रख दिया है. बहुत खूब.
जारी रहें.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
आईने की गवाही में बदल जाते हैं चेहरे
ReplyDeleteफिर हाथ नहीं आते कहाँ जाते हैं चेहरे
आईने की बात चली तो अपनी ही लिखी ये पंक्तिया याद आ गईं