ढलती हुई शाम को देख
समुद्र की लहरें और बेचैन हो उठीं
दूर क्षितिज पर धीरे-धीरे
अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जहाज में
जैसे हजारों तारे टिमटिमा रहे थे
डूबते सूरज को देखते हुए
मैं काफी देर तक सोचती रही
शायद मैं भी उस लहर की तरह थी
जो साहिल से टकराकर
फिर लहर बन जाती थी
-पायल
समुद्र की लहरें और बेचैन हो उठीं
दूर क्षितिज पर धीरे-धीरे
अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जहाज में
जैसे हजारों तारे टिमटिमा रहे थे
डूबते सूरज को देखते हुए
मैं काफी देर तक सोचती रही
शायद मैं भी उस लहर की तरह थी
जो साहिल से टकराकर
फिर लहर बन जाती थी
-पायल