Friday, June 17, 2016

 लहरें

ढलती हुई शाम को देख 
समुद्र की लहरें और बेचैन हो उठीं 
दूर क्षितिज पर धीरे-धीरे 
अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जहाज में 
जैसे हजारों तारे टिमटिमा रहे थे 
डूबते सूरज को देखते हुए 
मैं काफी देर तक सोचती रही
शायद मैं भी उस लहर की तरह थी 
जो साहिल से टकराकर 
फिर लहर बन जाती थी 
-पायल