Monday, July 26, 2010

सावन

तपते रेगिस्तान में
जब कोई छेड़ता मेघ मल्हार
बदरी छाती नयनों में
बरसता सावन ज़ार ज़ार
कोपलें फूटतीं
धरती झूम उठती
जब आस बंधाते उड़ते बादल
उड़ेलते अपना प्यार
~~पायल~~